आप मन प्रवाह की तीर हैं
कल्पना प्रत्यंचा अधीर है
स्वप्न गतिशील सुप्त गुंजित
संकल्पना सज्जित प्राचीर है
सौम्यता से सुगमता संवर्धित
उद्गम उल्लिखित पीर है
सौंदर्य को करती परिभाषित
कौन कहता मात्र शरीर हैं
स्वेद को श्वेत कर सहेजती
भेद में प्रभेद लकीर है
सत्य लुप्त कर दिया गया
तथ्य तीक्ष्णता की नीर हैं
विश्व वृत्त की कई क्यारियां
नारियां हीं नित्य वीर हैं
पुरुष एक मचान सदृश रहे
श्रेष्ठता युग्म की तकदीर हैं।
धीरेन्द्र सिंह
20.05.2025
19.46
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