मंगलवार, 20 मई 2025

नारी

 आप मन प्रवाह की तीर हैं

कल्पना प्रत्यंचा अधीर है

स्वप्न गतिशील सुप्त गुंजित

संकल्पना सज्जित प्राचीर है


सौम्यता से सुगमता संवर्धित

उद्गम उल्लिखित पीर है

सौंदर्य को करती परिभाषित

कौन कहता मात्र शरीर हैं


स्वेद को श्वेत कर सहेजती

भेद में प्रभेद लकीर है

सत्य लुप्त कर दिया गया

तथ्य तीक्ष्णता की नीर हैं


विश्व वृत्त की कई क्यारियां

नारियां हीं नित्य वीर हैं

पुरुष एक मचान सदृश रहे

श्रेष्ठता युग्म की तकदीर हैं।


धीरेन्द्र सिंह

20.05.2025

19.46




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें