नयन बदरिया पंख पसारे
पाहुन अगवानी को धाए
अकुलाहट से भरी गगरिया
मन छलकत नेह भिगाए
साँसों की गति अव्यवस्थित
स्थिति खुद को अंझुराए
गाय सरीखा उदर भाव है
चाह राह तकते पगुराए
गहन सदीक्षा मगन प्रतीक्षा
अगन द्वार खूब सजाए
युग्म हवन कोमल अगन
हृदय थाप की नई ऋचाएं
संगत भाव मंगत छांव
पंगत में लगते कुम्हलाए
झुंड चिरैया उड़ती हंसती
पाहुन आए लखि बौराए।
धीरेन्द्र सिंह
20.05.2025
16.00
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