चेष्टाएं प्रबलता की सब करें
अनुभवी अभ्यासी ही यूं चलें
अन्य अंधी दौड़ में उलझे कहें
साधक बन क्यों एकलक्षी गलें
जो चमकता दिखे, है अभ्यास
वर्ष कितने गुजरे इसी वलबले
शीघ्रता में कुछ मिला न कभी
गंभीरता जहां क्या करें मनचले
कौन क्या देख रहा स्थान कहां
देख पाना भौगोलिक भाल धरे
एक व्योम पर है कई दृष्टियाँ
व्योम सबको एकसा ना दिखे
प्रेम पर समाज पर खूब लिखे
हर रचना में कुछ नया दिखे
भाव-शब्द मनतार जिसका कसा
अभिव्यक्तियाँ झंकार नव ले खिलें।
धीरेन्द्र सिंह
22.05.2025
12.49
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