राहें हैं पर उनपर विरले पथिक हैं
तेज गति वाहनों की लगती होड़ है
श्रमिक भी अब दिखते बहुत कम
मशीनों से मेहनत होती जी तोड़ है
खेत हो खलिहान हो गेहूं या धान हो
हर कार्य मशीन कहें किसानी बेजोड़ है
गांव ढूंढे श्रमिक नहीं, मशीन बुलाइए
शीघ्र कार्य पूर्ण हो फुरसत ताबड़तोड़ है
शहर बना मशीन, संग लेकर संचालक
श्रमिक को कार्य नहीं इसका न तोड़ है
गली-कूचा या हो विस्तृत मैदान कहीं
मशीन सर्वज्ञ अभियांत्रिकी निचोड़ है।
धीरेन्द्र सिंह
27.06.2024
11.24
भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।
Nijatata काव्य
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