निज़ता

भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।

सोमवार, 27 अप्रैल 2020

संतों की हत्या

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संतों की हत्या कर रही मुझसे बात निहत्थों की घेर हत्या है कोई घात एक हवा कहीं बिगड़ी बेखौफ हो चुप रहना जीवंतता की न सौगात निहत्थों की हत...
गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

शब्दों को चाहिए

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व्यक्ति में यदि भाव हैं तो लगे सुघड़ महज पत्थर पर तो चलते हैं हथौड़े अनुभूति का अंदाज़ हो तो लगे जांबाज वरना तो सभी जी लेते अक्सर थोड़े-थोड़...
1 टिप्पणी:

तुमको जी लूँ

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तुमको जी लूँ तो जन्नत में पाऊं कहो आत्मने कब डुबकी लगाऊं नहीं तन, मन तक है मेरी मंजिल साहिल से कह दो तो बढ़ मैं पाऊं बदन का जतन सुख की ...
बुधवार, 22 अप्रैल 2020

सुबह

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सुबह जब मैं बालकनी में बैठ पहाड़ों को देखता हूँ हरे भरे पेड़ों से आती कोयल की कूक मन में उठती हुक, उठती हैं मन से भावों की अनेक कलियां...
गुरुवार, 12 सितंबर 2019

सुघड़ लगती हो

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सुघड़ लगती हो साड़ी जब तुमसे लिपट जाती है चूड़ियां जब रह-रह खनखनाती है पावों के महावर जब गुनगुनाते हैं हम और बहुत और  पास हो जाते हैं,...

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नारी सिर्फ श्रृंगार मनभावन अभिसार या कुछ और भी करता है निर्धारित देखने का तौर भी, देह की दालान या असीम आसमान वासना उन्माद की यह एक...
बुधवार, 11 सितंबर 2019

मन की तूलिका

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मन की तूलिका से भावों में रंग हो जाए विहंग तुमको सजाकर दुनिया को हटाकर, कब स्वीकारा है तुमने दुनिया के खपच्चे की बाड़ को अपने अंदाज स...
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धीरेन्द्र सिंह
हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में कार्यरत जिसमें कार्यालय, विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि, ऑनलाइन हिंदी समूहों में प्रस्तुत हिंदी पोस्ट में विकास, हिंदी के साथ अंग्रेजी का पक्षधर, हिंदी की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी विकास के प्रति विश्लेषण, हिंदी का एक प्रखर और निर्भीक वक्ता व रचनाकार।
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