तुमको जी लूँ तो जन्नत में पाऊं
कहो आत्मने कब डुबकी लगाऊं
नहीं तन, मन तक है मेरी मंजिल
साहिल से कह दो तो बढ़ मैं पाऊं
बदन का जतन सुख की काया बने
मन का वतन पाकर ध्वज फहराउं
कह दो बदन को क्यों मुझसे रंजिश
नयन जब तक न चाहें, मन कैसे पाउँ।
धीरेन्द्र सिंह
कहो आत्मने कब डुबकी लगाऊं
नहीं तन, मन तक है मेरी मंजिल
साहिल से कह दो तो बढ़ मैं पाऊं
बदन का जतन सुख की काया बने
मन का वतन पाकर ध्वज फहराउं
कह दो बदन को क्यों मुझसे रंजिश
नयन जब तक न चाहें, मन कैसे पाउँ।
धीरेन्द्र सिंह
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