Nijatata काव्य

मंगलवार, 13 मई 2025

रुचिकर

 लकड़ियों की छांव में, वनस्पति अनुभूति

भावमाओं के गांव में, शाब्दिक अर्थरीत

रचनागत गहनता में ढूंढते पगडंडियां ही

कदम गतिमान नहीं कहें प्रगति प्रतीति


हिंदी जगत में प्रचुर प्रखर हैं बैसाखियाँ

है प्रयास बैसाखी हटे साहित्य की जीत

लेखन से जुड़ें नहीं जपें लेखन कुरीतियां

ऐसे रुचिकारों से दरक रही सृजन भीत


चिंतन-मनन नहीं बस दबंग सर्वंग कहें

चर्चा साहित्यिक हो तो चाहें जाए बीत

तर्क का आधार नहीं साहित्य दरकार नहीं

फिर भी घुस बीच में दर्शाएं बौद्धिक लीख


ऐसे लोग चाहते मिले उन्हें साहित्यिक पहचान

अपनी लंगड़ी बातों को कहें है साहित्य नीति

ऐसे लोगों को वैचारिक उचित उत्थान मिले

आज हिंदी जगत में ढुलमुल मिलें ऐसे मीत।


धीरेन्द्र सिंह

13.05.2025

17.58



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