भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।
पौधे की टहनी
खिला हुआ फूल
पकड़ी हथेली देख
फूल गया भूल
गुलाबी गदरायी हथेली
पौधे को दे तूल
पुष्प खिलाया अभिनव
जैसे हथेली फूल
तुम निस दिन संवारो
पौधे में नव फूल
हतप्रभ सुंदर पुष्प
जीवन यही समूल।
धीरेन्द्र सिंह
24.08.2024
19.08
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