आपकी रचनाएं
दौड़ रही हैं
बनकर लहू
चाहतों से
और क्या कहूँ-
आपके रचना भाव
बरगद की घनी छांव
सुस्ताती जिंदगी है
शीतल मंद बयार
और खूब गेहूं;
आपके शब्द चयन
जैसे चढ़ावे के फूल
रंग और सुगंध अनुकूल
आसक्ति की डोर
और ऊपर चढूं;
आपकी रचनाधर्मिता
विषयों का आलोड़न
रचनाओं का सम्मोहन
आप लिखती रहें
और मैं पड़ता रहूं।
धीरेन्द्र सिंह
26.08.2024
06.33
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें