सोमवार, 24 जून 2024

शब्द और भाव

 शब्द लगाते भावनाओं की प्रातः फेरियां

स्तब्ध भाव उलझा ले रात्रि की टेरियां

 

प्रतिदिन देह बिछौना का हो मीठा संवाद

कोई करवट रहे बदलता कोई चाह निनाद

यही बिछौना स्वप्न दिखाए मीठी लोरियां

स्तब्ध भाव उलझा ले रात्रि की टेरियां

 

किसको बांधे चिपकें किससे शब्द बोध

शब्द भाव बीच निरंतर रहता है शोध

प्रेमिका सी चंचलता भावना की नगरिया

स्तब्ध भाव उलझा ले रात्रि की टेरियां

 

प्रेमी सा ठगा शब्द चंचल प्रेमिका भाव

शब्द हांफता बोल उठा पूरा कैसे निभाव

अवसर देख स्पर्श उभरा छुवन की डोरियां

स्तब्ध भाव उलझा ले रात्रि की टेरियां।

 

धीरेन्द्र सिंह

24.06.20२4

15.17

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