होती है बारिश, बरसते हो तुम
कहीं तुम, सावनी घटा तो नहीं
आकाश में हैं, घुमड़ती बदलियां
कहीं तुम, पावनी छटा तो नहीं
बेहद करीबी का, एहसास भी है
तुम हो जरूरी, यह बंटा तो नहीं
उफनती नदी सा, हृदय बन गया
बह ही जाएं कहीं, धता तो नहीं
खयालों में रिमझिम मौसम बना
भींग जाना यह तो बदा ही नहीं
सावन आया घटा झूम बरसी भी
बूंद सबको छुए यह सदा तो नहीं।
धीरेन्द्र सिंह
19.06.2024
07.43
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