सुबह ढल रही है उदय शाम हो
कहो ज़िद्दी ऐंठन भरी तान हो
प्रेम की आपकी कई परिभाषाएं
एक समझें कि दूजी उभर आएं
नए प्रेम की आवधिक गान हो
कहो ज़िद्दी ऐंठन भरी तान हो
एक के साथ दूजा करे आकर्षित
लपक कर बढ़े कर पहला शमित
दूजा भाया नहीं ना इत्मिनान हो
कहो ज़िद्दी ऐंठन भरी तान हो
साहित्य छूटा क्या है एम ए खूंटा
हुआ जब अपमान थे अपने अजूबा
बिखर कर हो भंजित लिए गुमान हो
कहो ज़िद्दी ऐंठन भरी तान हो।
धीरेन्द्र सिंह
12.03.2024
20.55
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