कहां तक चलेगा संग यह किनारा
कहां तक लहरों की हलचल रहेगी
तुम्ही कह दो बहती हवाओं से भी
कब तक छूती नमी यह रहेगी
कहो बांध पाओगी बहती यह धारा
तरंगों पर कब तक उमंगें बहेगी
मत कहना कि वर्तमान ही सबकुछ
फिर वादों की तुम्हारी तरंगे हंसेगी
डरता है प्यार सुन अपरिचित पुकार
एक अनहोनी की शायद टोली मिलेगी
कहां कौन प्यार खिल रहा बारहमासी
मोहब्बत भी रचि कोई होली खिलेगी
अधर, दृग, कपोल रहे हैं कुछ बोल
एक मुग्धित अवस्था आजीवन चलेगी
कहीं ब्लॉक कर निकस जाएं गुईंया
मुड़ी जिंदगी तब निभावन करेगी।
धीरेन्द्र सिंह
21.01.2024
11.56
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