प्रेमिका प्रेमी यदि अपना भगा दे
विखंडित हो ही जाती संलग्नता
विगत जुगनू सा चमका लगे तो
चाह हंसती समाए कुरूप नग्नता
समर्पण करनेवाला करे जब तर्पण
वायदों की चिता सी हो निमग्नता
एक टूटन बिखरने लगे परिवेश भर
व्योम तपने लगे पा राख की दग्धता
कोई दूजा बना अपना, मिल जपना
खपना एक-दूजे की, तन सिक्तता
पाला बदलते, जो करे प्यार अक्सर
छपना देह पर, खुश देख दिल रिक्तता
भावशून्य भी जलते हैं, अलाव बहुत
चर्चे में यही, अलाव रचित स्निग्धिता
तपन का तौर, निज संतुष्टि साधित
दहन में दौर, भाव ग्रसित विरक्तिता
हृदय हारा हुआ सैनिक सा गुमसुम कहीं
तन लगे विजयी सम्राट की लयबद्धता
क्यों श्रृंगार पर रचें रचनाकार सब
भ्रमित राह पर जब प्रीत की गतिबद्धता।
धीरेन्द्र सिंह
11.04.2023
13.36
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