यादों के बिस्तर पर
अभिलाषाओं की करवटें
सिलवटों में दर्द उभरे
भावनाओं की पुरवटें
दिल में पदचाप ध्वनि
पलक बंद ले तरवटें
अनुभूतियों की आंधी चले
तोड़ सारी सरहदें
विवशता के समझौते हैं
व्यक्ति उड़ रहा परकटे
पुलकावलि करे सुगंधित
तन समर्पित मनहटे
निरंतर जीवन विभाजित
व्यक्तित्व के झुरमुटें
व्यवहार ले बहुरूपिया
जुगनुओं सा जल उठें।
धीरेन्द्र सिंह
12.04.2023
04.35
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