गुलाल फेंक पलकों में छुप गयी अंखिया
कहां से भींग आयी बोल पड़ी सब सखियां
एक सिहरन एक चिंतन में लिपटी हुई थी
बात उड़ने लगी रंग ली तो पक्की अंगिया
गुदगुदी कर सताने लगे वह पाजी नयन
गगन को रंगने लगी तन्मयी मन बतिया
चेहरे पर नई चमक सदाबहार यह मुस्कान
एक पल ने रंग दी कब प्यारी सी दुनिया
लोग कहने लगे तितली सी क्यों उड़ने लगी
इश्क़ महकने को कहां उम्र थीं मजबूरियां।
धीरेन्द्र सिंह
05.04.2023
06.19
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