वेलेंटाइन महोत्सव पर दो कविताएं :-
आह! प्रणय
ओह! प्रणय
भावनाओं की नर्मियाँ
दो दिलों के दरमियाँ;
मन के गुंथन
चाहत हो सघन
कैसी यह खुदगर्जियाँ
दो दिलों के दरमियाँ
कह रही धड़कनें
बढ़ रही तड़पनें
मिलन की सरगर्मियां
दो दिलों के दरमियाँ
व्यर्थ है प्रतिरोध
सजग है निरोध
सुसज्जित हैं अर्जियां
दो दिलों के दरमियाँ।
धीरेन्द्र सिंह
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वेलंटाईन डे😊
फूल मुस्कराए
सुगंध महकाए
भावना का खेल
दिवस प्यार मेल
फोन से बातें
व्हाट्सएप्प छांटे
चुपके बढ़े बेल
दिवस प्यार मेल
दैहिक दांव
शहर या गांव
कईयों से मेल
दिवस प्यार मेल
नाम वेलंटाईन
कलमुँही डाईन
प्यार बहे तेल
दिवस प्यार मेल
कैसी संस्कृति
रुग्ण ऐसी मति
मिल बनो भेल
दिवस प्यार मेल
झूठे दिखावे
तृष्णा बुलावे
जिस्म मानो पचमेल
दिवस प्यार खेल
मीठी रसधार
एकदिवसीय प्यार
उद्दंडता का रेलमपेल
दिवस प्यार खेल।
धीरेन्द्र सिंह
दुनिया में हर चीज के दो पहलू हैं, वेलेंटाइन डे के दोनों पक्षों पर नज़र डालती रचनाएँ
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