हवन कुंड जलाकर
उसका रचयिता
प्रत्येक आहुति में
किए जा रहा है
अर्पित अपने गुनाह
अर्जित करता शक्ति
ईश्वर से
हवन कुंड का रचयिता
हो सम्माननीय
हमेशा आवश्यक नहीं,
धर्म की आड़ में
शिकार की ताड़
और नए शिकार से प्यार
भीतर से,
हवन कुंड का रचयिता
करता है ब्लॉक
जब पाता है नया शिकार
एक चाहत की प्यास
कहता है
"मेरा ही बनाया हवन कुंड'
आहुति दे
भोलापन और मासूमियत
भीतर बदनीयत
स्वार्थ की हुंकार
प्यासे तन-मन की झंकार
एक पकड़े दूजा छोड़े
नातों से नव नाता जोड़े
आदमी दे।
धीरेन्द्र सिंह
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