निज़ता

भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।

रविवार, 4 जुलाई 2021

बाधित सम्प्रेषण

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 शाम हसरतों की कर रही शुमारी और गहरी हो रही फिर वही खुमारी एक अकेले लिए चाहतों के मेले कैसे बना देता है वक़्त खुद का मदारी प्रणय का प्रयोजन ह...
शनिवार, 3 जुलाई 2021

कब बोलोगी

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 चाहत की धीमी आंच पर इंसान भी सिजता है, तथ्य है सत्य है आजीवन न डिगता है, चाहत कब झुलसाती है नैपथ्य बस सिंकता है, कब बोलोगी इसी का इन्तजार म...
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शुक्रवार, 2 जुलाई 2021

खंडित अभिव्यक्तियाँ

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 उन्मुक्त अभिव्यक्तियाँ न तो समाज में न साहित्य में, नियंत्रण का दायरा हर परिवेश में, सभ्य और सुसंस्कृत दिखने की चाह घोंटती उन्मुक्तता छवि आ...
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रिक्त अंजुल

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 मर्यादित जीवन  बदलता है केंचुल एक चमकीली आभा खातिर, इंसानियत का प्यार रिक्त अंजुल उलीचता रहता है अख्तियार बनकर शातिर, दौड़ने का भ्रम लिए यह ...
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अजगर शाम

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 शाम अजगर की तरह समेट रही परिवेश निगल गई कई हसरतें, आवारगी बेखबर रचाए चाह की नई कसरतें। धीरेन्द्र सिंह 02.07.2021 शाम 06.17 लखनऊ

शाम का छल

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 शाम अपनी जुल्फों में लिए पुष्प सुगंध हवा को करती शीतल क्या दुलारती है सबको, शाम करती है छल  निस दिन अथक तोड़ती है भावनात्मक बंधन दे अन्य के ...
गुरुवार, 1 जुलाई 2021

तुम

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 तुम नयनों का प्रच्छा लन हो तुम अधरों का संचालन हो हृदय तरंगित रहे उमंगित ऐसे सुरभित गति चालन हो संवाद तुम्हीं उन्माद तुम्हीं मनोभावों की प...
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धीरेन्द्र सिंह
हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में कार्यरत जिसमें कार्यालय, विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि, ऑनलाइन हिंदी समूहों में प्रस्तुत हिंदी पोस्ट में विकास, हिंदी के साथ अंग्रेजी का पक्षधर, हिंदी की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी विकास के प्रति विश्लेषण, हिंदी का एक प्रखर और निर्भीक वक्ता व रचनाकार।
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