भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।
मर्यादित जीवन
बदलता है केंचुल
एक चमकीली आभा खातिर,
इंसानियत का प्यार
रिक्त अंजुल
उलीचता रहता है अख्तियार
बनकर शातिर,
दौड़ने का भ्रम लिए
यह रेंगती जिंदगी।
धीरेन्द्र सिंह
अपना अपना नजरिया , ज़िन्दगी को देखने का।
जी संगीता जी यह नजरिया ही तो है। नजरिया कितनी बातों को समेट लेती है। धन्यवाद।
जिंदगी जैसे जिओ सब अपने हाथ में हैं
कविता जी काश जैसे चाहे वैसा जी ले यह ज़िन्दगी। एक सकारात्मक ऊर्जा के लिए धन्यवाद कविता जी।
अपना अपना नजरिया , ज़िन्दगी को देखने का।
जवाब देंहटाएंजी संगीता जी यह नजरिया ही तो है। नजरिया कितनी बातों को समेट लेती है। धन्यवाद।
हटाएंजिंदगी जैसे जिओ सब अपने हाथ में हैं
जवाब देंहटाएंकविता जी काश जैसे चाहे वैसा जी ले यह ज़िन्दगी। एक सकारात्मक ऊर्जा के लिए धन्यवाद कविता जी।
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