निज़ता

भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।

सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

जीवन संघर्ष

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विगत प्रखर था या श्यामल था इस पहर सोच कर क्या करना है लक्ष्य खड़ा लगे प्रतिद्वंदी बड़ा अब चिंतन में ना नि र्झर ब हना पल -छिन में होते हैं ...
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बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

निज भाव

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शब्दों में पिरोया भाव तो अभिव्यक्ति बन गई सम्प्रेषण का हुआ असर कि नई प्रीत बन गई ई-मेल , टिप्पणियॉ या कि रचनाएं नई-नई उन तक पहुंचने की को...
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सोमवार, 31 जनवरी 2011

अब तुम्ही बतलाओ

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  आखिर में तय कर लिया दिल ने कि चाहत के हुलास का मन के गुलाब का नज़रों के शबाब का कोई विवेचनात्मक तर्क नहीं होता है, प्यार का संकल्...
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शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

भोर आज छू गई

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भोर आज छू गई हौले से मुस्कराई दूब पर फैली नमी चहचहाती चिड़ियों का वृंद गान खिल गई है छटामयी ज़मीं झूमती डालियों में नेह निमंत्रण यादें...
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गुरुवार, 27 जनवरी 2011

आपका चेहरा

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आपका चेहरा ना देखा कुछ ना देखा बोल की मिश्री ना तो कैसी मिठास चांद चलता चांदनी ले चुलबुली लहरें तट पर दौड़ती कर अट्ठहास तृप्ति का अनुभव...
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बुधवार, 26 जनवरी 2011

चाहतों की चुगलियां

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चाहतों की चुगलियों की चाशनी तुम भी तो चखती होगी रागिनी एक मिठास पुष्प से भ्रमर उड़ाए सूर्य रश्मियां निरखें बन कुनकुनी ज़ुल्फ उड़ाने की...
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सोमवार, 24 जनवरी 2011

तृप्ति का बस एक गोता

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भावनाएं भीरूता का अक्सर करें प्रदर्शन कल्पनाएं विहंगमयी नभ को करे कमतर युग्म यह निर्मित करे अभिसार का त्यौहार कौन छूटा इससे नभतर हो या जल...
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धीरेन्द्र सिंह
हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में कार्यरत जिसमें कार्यालय, विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि, ऑनलाइन हिंदी समूहों में प्रस्तुत हिंदी पोस्ट में विकास, हिंदी के साथ अंग्रेजी का पक्षधर, हिंदी की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी विकास के प्रति विश्लेषण, हिंदी का एक प्रखर और निर्भीक वक्ता व रचनाकार।
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