विगत प्रखर था या श्यामल था
इस पहर सोच कर क्या करना
है लक्ष्य खड़ा लगे प्रतिद्वंदी बड़ा
अब चिंतन में ना निर्झर बहना
पल-छिन में होते हैं परिवर्तन
फिर क्या सुनना और क्या कहना
ठिठके क्षण को क्यों व्यर्थ करें
हो मुक्त समीर सा बहते रहना
एक संग बना जीवन प्रसंग है
हो मुक्त समीर सा बहते रहना
एक संग बना जीवन प्रसंग है
तब जीवन से क्या है हरना
उड़ने की यह अभिलाषा प्रबल
उड़ने की यह अभिलाषा प्रबल
विहंग सा उमंग से क्या डरना
रहे कुछ ना अटल, है बस छल
कलछल से क्यों यौवन भरना
रहे कुछ ना अटल, है बस छल
कलछल से क्यों यौवन भरना
है एक प्रवाह के पार पहुंचना
मांझी के सोच से क्या करना.
मांझी के सोच से क्या करना.
अभिव्यक्ति की डोर पर,हर धड़कन है निज़ता,
शब्दों की अमराई में,भावों की तरूणाई है
दिल की लिखी रूबाई मे,एक तड़पन है निज़ता.
रहे कुछ न अटल ---- अगर इन्सान ये सोच ले तो दुनिया स्वर्ग बन जाये। सार्थ सन्देश देती रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंकित्ती सुन्दर कविता....
जवाब देंहटाएंवसंत पंचमी पर ढेर सारी बधाई !!
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'पाखी की दुनिया' में भी तो वसंत आया..
बेहद उम्दा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
ठिठके क्षण कों क्यूँ व्यर्थ करें , हो मुक्त समीर सा बहना ....वाह !, लाजवाब !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर कविता, यही उत्साह बना रहे
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