निज़ता

भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।

बुधवार, 5 जनवरी 2011

दिए की लौ में

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दिए की लौ में नयन यह निरखते रहा एक चेहरे से लिपट रात सारी जलते रहा सियाह परिवेश को रोशन हो जाने की तरस दिए के आसरे हर रात दिल लड़ते रहा ह...
मंगलवार, 4 जनवरी 2011

इस तरह शाम ने

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इस तरह शाम ने जुल्फों में छुपाया तुमको चांद भी रात पूरी भागता रहा ना पाया बादलों ने भी की तरफदारी शाम की खूब चांदनी छुपती रही मिल ना पाय...
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शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

नव वर्ष

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आज नूतन नव किरण है , तुम कहां मैं हूं डूबा इक गज़ल में , गुम जहां कल जो बीता वह ना छूटा राग से अब भी अनुराग , अभिनव कहकशां सूर्य रश्म...
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गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

एक दिन

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ऑखें ठगी सी रह गईं क्या आज कुछ कह गईं परिधान की नव प्रतिध्वनियॉ तन सम्मान की सरगर्मियॉ शबनम भी आज पिघल गई भोर बावरी सी मचल गई मुख भाव की य...
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बुधवार, 29 दिसंबर 2010

चॉद,चूल्हा

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चॉद , चूल्हा और चौका , चाकर क्या पाया है इसको पाकर खून - पसीना मिश्रित ऑगन में लगती है वह अधजल गागर रूप की धूप में स्नेहिल रिश्ते चले...
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बुधवार, 22 दिसंबर 2010

बाजारवाद-बहाववाद

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ज़िंदगी हर हाल में बहकने लगी कठिन दौर हंस कर सहने लगी मासिक किश्तों में दबी हुई मगर कभी चमकने तो खनकने लगी बाजारवाद में हर दर्द की दवा...
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मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

प्याज़

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नए सफर की ओर चली लेकर सरपर अपना ताज नज़र-नज़र को धता बताकर उछल रही है प्याज हॉथों से छू भी ना सकें रसोई को आए लाज आंसू बिन अंखिया पथर...
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धीरेन्द्र सिंह
हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में कार्यरत जिसमें कार्यालय, विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि, ऑनलाइन हिंदी समूहों में प्रस्तुत हिंदी पोस्ट में विकास, हिंदी के साथ अंग्रेजी का पक्षधर, हिंदी की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी विकास के प्रति विश्लेषण, हिंदी का एक प्रखर और निर्भीक वक्ता व रचनाकार।
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