निज़ता

भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।

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शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

कीजिए सबको साधित

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आधुनिकता भव्यता का शीर्ष मचान है परंपराएं मुहल्ले की लगे एक दुकान है द्वंद यह सनातनी फैसला रहे सुरक्षित इसलिए हर मोड़ का निज अभिमान है ...
गुरुवार, 4 नवंबर 2010

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हौले से सधे लफ्ज़ों से, उठती हरदम यह शरारत तुम्ही वह ठौर हो, जो कानों मे करती रहे आहट. कुछ भी ना सोचो, दिल से ज़रा सोचो मुझको आसम...

मैं

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गलियॉ-गलियॉ घूम चुका, ऐसा मैं दीवाना हूँ झुलस-झुलस कर ज़िंदगी पाऊँ, ऐसा मैं परवाना हूँ. तरह-तरह की आग जल रही, तपन सहन नहीं कर पाऊँ लिपट-...
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धीरेन्द्र सिंह
हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में कार्यरत जिसमें कार्यालय, विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि, ऑनलाइन हिंदी समूहों में प्रस्तुत हिंदी पोस्ट में विकास, हिंदी के साथ अंग्रेजी का पक्षधर, हिंदी की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी विकास के प्रति विश्लेषण, हिंदी का एक प्रखर और निर्भीक वक्ता व रचनाकार।
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