निज़ता

भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।

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गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

जीत अपूर्व

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  फिर हवाओं ने छुआ नवपल्लवित पंखुड़ियाँ नव सुगंध ने सुरभि शृंखला संव्यवहार किया अभिनव रंग में हुआ प्रतिबिम्बित प्यार फिर चाहत ने र...
शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

हुस्न की साजिश

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एक हुस्न की साजिश है एक अदा की है रवानगी सब कुछ निखर रहा है दे दी क्या यह दीवानगी अपनी डगर की मस्तियों में बिखरी रहती थी चॉदनी तारों ...
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धीरेन्द्र सिंह
हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में कार्यरत जिसमें कार्यालय, विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि, ऑनलाइन हिंदी समूहों में प्रस्तुत हिंदी पोस्ट में विकास, हिंदी के साथ अंग्रेजी का पक्षधर, हिंदी की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी विकास के प्रति विश्लेषण, हिंदी का एक प्रखर और निर्भीक वक्ता व रचनाकार।
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