Nijatata काव्य

शनिवार, 8 नवंबर 2025

देह और दीप

 देह मंदिर सा लगे है

नेह लगे अति समीप

भावना की हवा बहे

हृदय लौ बन दीप


कल्पनाओं की बजे घंटियां

कामनाओं के भजन गीत

अर्चना थाली सा मन बने

वर्जनाएं मिटें मिल दीप


ओस सा मुख निर्मल

कजरारी आंखों की रीत

गाल डिम्पल गहन गूढ़

चेतना चपल मिल मीत


एक आकार से साकार

देह भक्ति मन प्रीत

साकार में ही संसार

देह ध्येय तन दीप।


धीरेन्द्र सिंह

09.11.2025

11.38




1 टिप्पणी: