बुधवार, 16 जुलाई 2025

सत्य

 सत्य को पसंद कर्म की अर्चना है

स्वयं की अभिव्यक्ति ही सर्जना है

आत्मद्वंद्व प्रत्येक प्राणी स्वभाव भी

सहजता क्रिया में आत्म विवेचना है


अभिव्यक्तियों की हैं विभिन्न कलाएं

प्रत्येक कला प्रथम आत्म वंदना है

अभिव्यक्ति को बांध जीता है जो भी

क्या करे मनुष्य वह सही संग ना है


खुलने के लिए खिलना प्रथम चरण

खिल ना सके मन जीवन व्यंजना है

मुरझाए पुष्प लिए झूमती टहनियां हैं

सब जीते हैं कहते जीवन तंग ना है


एक दृष्टि से सृष्टि को न देखा जा सके

विभिन्नता ही भव्य जीवन अंगना है

स्वयं को निहारना मुग्ध मन से जो हो

समझिए जीवन घेरे सूर्यरश्मि कंगना है।


धीरेन्द्र सिंह

17.07.2025

10.39




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