बुधवार, 12 फ़रवरी 2025

सुनो प्रिये

 सुनो प्रिये, विस्तृत है प्रणय  हमारा

गुनो हिए, कृतत्व है भ्रमण हमारा

आदि अनंत में हो तुम ही  सहराही

प्रकृति निखरती देख रमण तुम्हारा


तुम में हैं नए राग और कलाएं अनेक

मेरी आवाज बने धुन राग तुम्हारा

संगीत सम्मिश्रित जीवन लयबद्ध

धुन ही तुम्हारी साँसों का मेरा गुजारा


विस्तृत प्रणय में सिद्ध कई अनुराग

फाग राग में कितना है हमने पुकारा

कहती हो पर कम सुनती मुझको

इसीलिए प्रणय चाह में तुम्हें पुकारा।


धीरेन्द्र सिंह

12.02.2025

19.50

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