Nijatata काव्य

शुक्रवार, 24 जनवरी 2025

आंधी

 चीख निकलती है हलक तक आ रुक जाती है

यह मात्र वेदना है या एक विद्रोह की आंधी है


गरीबी, लाचारी में चीख अब बन चुकी है आदत

मजबूरियां चीखती रहती है झुकी अपनी वसाहत

उनपर लगता आरोप सभी उद्दंड और उन्मादी हैं

यह मात्र वेदना है या एक विद्रोह की आंधी है


किस कदर कर रहे हर क्षेत्र में आयोजित चतुराई

जिंदगी रोशनी की झलक देख खुश हो अकुलाई

हर कदम जिंदगी का बहुत चर्चित और विवादित है

यह मात्र वेदना है या एक विद्रोह की आंधी है


कब चला कब थका कब उन्हीं का गुणगान हुआ

चेतना जब भी चली भटक आकर्षण अभियान हुआ

साहित्य बिक रहा पर कुछ अंश प्रखर संवादी है

यह मात्र वेदना है या एक विद्रोह की आंधी है।


धीरेन्द्र सिंह

24.01.2025

21.01

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