पसीने के बूंदों संग भाल जगमगाता
है
आपके श्रम में प्यार संग यूं
निभाता है
अपने भीतर ही उपजता है अपना प्यार
हृदय के कोने में छुपा रहता है
वह यार
कितना भी व्यस्त रहें बूंद झिलमिलाता
है
आपके श्रम में प्यार संग यूं
निभाता है
स्वेद की बूंद की अपनी विशिष्ट
महत्ता
श्रमिक के सिवा क्या पसीना बिन
इयत्ता
तेज हो सांस तो स्वेद संतुलन
बनाता है
आपके श्रम में प्यार संग यूं
निभाता है
स्वस्थ साफ देह स्वेद इत्र भी
शरमाए
कोई पहना वस्त्र नासिका की भरमाए
स्वेद क्रांति पर पाठ कहां कौन
पढ़ाता है
आपके श्रम में प्यार संग यूं
निभाता है
पसीने से होती है जग में नई क्रांतियां
पसीना में भी श्रृंगार की बसी
भ्रांतियां
पसीने से जुड़ता वह पूर्ण जुड़
जाता है
आपके श्रम में प्यार संग यूं
निभाता है।
धीरेन्द्र सिंह
11.05.2024
12.08
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