Nijatata काव्य

सोमवार, 29 अप्रैल 2024

गर्मी

 तन ऊष्मा, मन ऊष्मा कितनी सरगर्मी

वातायन बंद हुए घुडक रही है गर्मी


गर्म लगे परिवेश गर्म चली हैं हवाएं 

पेड़ों की छाया में आश्रित सब अकुलाएं

हे सूर्य अपनी प्रखरता को दें नर्मी

वातायन बंद हुए घुडक रही है गर्मी


वृक्ष कट रहे क्रमश जंगल भी उकताएं

जंगल अग्नि लपट में हरियाली मिटाएं

कितने कैसे रहें पनप प्रकृति अधर्मी

वातायन बंद हुए घुडक रही है गर्मी


कूलर मर्यादित एसी ही हाँथ बटाए

निर्बाधित गर्मी को यही मात दिलाए

मौसम भी करने लगा अब हठधर्मी

वातायन बंद हुए घुडक रही है गर्मी।


धीरेन्द्र सिंह


30.04.2024

10.36

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