शनिवार, 30 मार्च 2024

कह दीजिए

 क्यों प्रतीक, बिम्ब हों

क्यों हों नव अलंकार

यदि लहरें हैं तेज तो

कह दीजिए है प्यार


क्यों महीनों तक कश्मकश

क्यों सहें मानसिक चीत्कार


यदि प्रणय की प्रफुल्ल पींगे

कह दीजिए है प्यार


साहित्य सृजन है कल्पना

मनभाव का है झंकार

यदि यथार्थ जीना हो

कह दीजिए है प्यार


आदर्श, परंपरा और नैतिकता

प्रणय न जाने यह पतवार

यदि लहरों सा हौसला

कह दीजिए है प्यार।


धीरेन्द्र सिंह

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