बुधवार, 3 जनवरी 2024

मस्तियाँ


अजब गजब दिल की बन रही बस्तियां

हर बार धार नई दे तुम्हारी मस्तियाँ

 

तुम के संबोधन को बुरा ना मानिए

सर्वव्यापी तुम ही कहा जाए जानिये

सर्वव्यापी लग रहीं आपकी शक्तियां

हर पल धार नई दे तुम्हारी मस्तियाँ

 

लगन की दहन मनन नित्य कह रहा

क्यों छुपाएं सत्य रतन दीप्ति कर रहा

उलझन समाए भ्रमित भौंचक हैं बस्तियां

हर पल धार नई दे तुम्हारी मस्तियाँ

 

नित नए भाव से मुखर आपके अंदाज

विभिन्न रस सराबोर समययुक्त साज

कलाएं अनेक अद्भुत लगें अभिव्यक्तियां

हर पल धार नई दे तुम्हारी मस्तियाँ

 

लुप्त हुए सुप्त हुए या कहीं गुप्त हुए

मुक्त हुए सूक्ति हुए या वही उपयुक्त हुए

आपकी अदाओं की अंजन भर अणुशक्तियां

हर पल धार नई दे तुम्हारी शक्तियां।

 

धीरेन्द्र सिंह


03.02.2024

19.22

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