अजब गजब दिल की बन रही बस्तियां
हर बार धार नई दे तुम्हारी मस्तियाँ
तुम के संबोधन को बुरा ना मानिए
सर्वव्यापी तुम ही कहा जाए जानिये
सर्वव्यापी लग रहीं आपकी शक्तियां
हर पल धार नई दे तुम्हारी मस्तियाँ
लगन की दहन मनन नित्य कह रहा
क्यों छुपाएं सत्य रतन दीप्ति
कर रहा
उलझन समाए भ्रमित भौंचक हैं बस्तियां
हर पल धार नई दे तुम्हारी मस्तियाँ
नित नए भाव से मुखर आपके अंदाज
विभिन्न रस सराबोर समययुक्त साज
कलाएं अनेक अद्भुत लगें अभिव्यक्तियां
हर पल धार नई दे तुम्हारी मस्तियाँ
लुप्त हुए सुप्त हुए या कहीं
गुप्त हुए
मुक्त हुए सूक्ति हुए या वही
उपयुक्त हुए
आपकी अदाओं की अंजन भर अणुशक्तियां
हर पल धार नई दे तुम्हारी शक्तियां।
धीरेन्द्र सिंह
03.02.2024
19.22
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