शनिवार, 12 अगस्त 2023

हो जाएंगे हताश

 देह के द्वार पर प्यार की तलाश

युग रहा असफल हो जाएंगे हताश


एक झंकार पकड़ती हैं अनुभूतियां

भाव फ़नकार में मिलें यह रश्मियां

मुक्त गगन है नहीं, यह बाहुपाश

युग रहा असफल हो जाएंगे हताश


जीत कैसी हार कैसी और दबदबा

संघर्ष की फुहार देता इसे बज़बजा

दबंगता से कब हुआ, कोमल विन्यास

युग रहा असफल हो जाएंगे हताश


यह मुंडेर वह मुंडेर क्यों री गौरैया

प्रकृति है या प्यास,क़ उजबक खेवैया

एक ही मुंडेर पर टिकती नहीं आस

युग रहा असफल हो जाएंगे हताश


ध्यान है, सम्मान है, अभिमान है प्यार

विविधता मन में है, क्यों विविध यार

द्रवित, दमित होगा यह भ्रमित उल्लास

युग रहा असफल हो जाएंगे हताश।


धीरेन्द्र सिंह

12.08.2023

07.06

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