नरीमन पॉइंट का पत्थर हूँ
तुम हो सागर की लहरें
मिलकर दोनों तो कुछ टूटें
आखिर दृढ़ता वाले जो ठहरे
कितने निश्चिन्त बैठे हैं लोग
ले भाव निभाव इकहरे
लहरें कूद आती सड़कों तक
पत्थर ताकते गहरे-गहरे
लहरें प्रीत संदेसा लाती लगातार
अस्वीकार, पत्थर मन है भरे
ना रुकतीं फिर भी लहरें मतवाली
जीवन कब, जज्बातों को धरे
समझ गयी न आनेवाली ओ लहरें
पत्थर सामने क्यों दिखावा करे
जब तक रहा समाहित, था तेरा
अब किनारे पत्थर, है आग भरे।
धीरेन्द्र सिंह
02.04.2023
21.29
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