हिचके रंग गुलाल, देख गुलाबी गाल
ना सोचें नारी ही, रखतीं सुर्खाबी
ताल
पुरुष गाल रंग जाएं, फागुनी ठिठोली
में
नारी उमंग उत्साही, वाही इस होली
में
नारी नयन सृष्टि पिचकारी, लगे दुधारी
अंग-अंग रंग लिए, हो अनुपम चित्रकारी
पुरुष ठगा सृष्टि निरखे, अटकी बोली में
नारी उमंग उत्साही, वाही इस होली
में
घिर जाएं नारियों से, कान्हा ना बन
पाएं
देख घबराया चेहरा, संग नारी मुस्काएं
झुकाए पलकें सोचे, रंग बन गए टोली
में
नारी उमंग उत्साही, वाही इस होली
में
महिलाओं की देख लगन, गगन रंग डूबा
होली में जब नारी निकलें, सहमे सूबा
रंग लिए आजीवन चलतीं, नारी झोली में
नारी उमंग उत्साही, वाही इस होली में।
धीरेन्द्र सिंह
02.02.23
20.24
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