भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।
कंकड़ लगातार
जल वलय
डुबक ध्वनि
खुद से युद्ध
मन चितेरा।
धीरेन्द्र सिंह
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