प्यार
कोरोना काल में
काल कवलित,
दिलजलों ने कहा
कैसे मरा,
स्वाभाविक मृत्यु
या मारा किसी ने,
कौन समझाए
प्यार मरता है
अपनी स्वाभाविक मृत्यु
भला
कौन मार सका ,
प्यार तो प्यार
कुछ कहें
एहसासी तो कुछ आभासी,
भला
कौन समझाए
दूर हो या पास
होता है प्यार उद्गगम
एहसास के आभास से,
मर गया
स्मृतियों के बांस पर लेटा
वायदों का ओढ़े कफन
उफ्फ़ कितना था जतन।
धीरेन्द्र सिंह
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