निज़ता

भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।

रविवार, 13 अप्रैल 2025

जिज्ञासी

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 प्रणय का प्रस्ताव लिए तत्पर अभिलाषी महिला की रचना हो, दौड़ पड़ें "जिज्ञासी" यौन कामनाओं के विक्षिप्त रुग्ण प्राणी हर नारी पर मुग्ध ...
गुरुवार, 10 अप्रैल 2025

यह कंस

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 अनेक पत्र-पत्रिकाएं, समूह, मंच सब के सब है हिंदी के सरपंच इनके संचालनकर्ता क्या हिंदी कर्ता हिंदी दिखावा हिंदी विभिन्न पंथ कर्ता-धर्ता का अ...
बुधवार, 9 अप्रैल 2025

आखेटक

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 कितना रचेगा कोई जीवन अपना कब तक रहेंगी दौड़ती कामनाएं हाथों में लिए टहनियां और हांफती हांकती खुद को, कि निकल आएं फूल सूखी टहनियों में, जीवन ...
मंगलवार, 8 अप्रैल 2025

किताबें

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 किताबें वैचारिक भंवर है पाठक मन को गोल-गोल घुमाते उतारते जाती हैं खुद के भीतर और अंततः पाठक किताब हो जाता है, किताबें होती हैं दबंग एक आवरण...
सोमवार, 7 अप्रैल 2025

चाह

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 अब भी तो बरसती हैं वैसी ही बदलियां अब भी रहे हैं भींग पर वह बात नहीं मनोभाव अब भी चाहे वही “अठखेलियाँ” बदन की साध कहे, अब वह चाह कहीं बूंदो...
शनिवार, 5 अप्रैल 2025

काव्य

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 अधिकांश, काव्य शब्दों में समझते हैं काव्यांश भावनाओं के यूं झुलसते हैं लगता है प्रतीक, बिम्ब धुंध हो गए भाव काव्य के कैसे अब कुंद हो गए शब्...
1 टिप्पणी:
शुक्रवार, 4 अप्रैल 2025

हिंदी समूह

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 हिंदी समूह से जुड़ना मेरा भाषा कर्तव्य है तू बता समूह सफल साहित्य क्या महत्व है? कितने समूह छोड़ दिया जो कहते भव्य हैं कुछ ने मुझे निकाला सोच...
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धीरेन्द्र सिंह
हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में कार्यरत जिसमें कार्यालय, विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि, ऑनलाइन हिंदी समूहों में प्रस्तुत हिंदी पोस्ट में विकास, हिंदी के साथ अंग्रेजी का पक्षधर, हिंदी की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी विकास के प्रति विश्लेषण, हिंदी का एक प्रखर और निर्भीक वक्ता व रचनाकार।
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