निज़ता

भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।

शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

उलाहना

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 वैश्विक हिंदी दिवस पर मिला उनका संदेसा थी कोमल शिकायत नव वर्ष संदेसा न भेजा क्या करता, क्या कहता, उन्होंने ही था रोका कुछ व्यस्तता की बातकर...
गुरुवार, 9 जनवरी 2025

विश्व हिंदी

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 विश्व हिंदी दिवस दस जनवरी बोल रहा है  बीती विभावरी, अब न वह ज्ञान न शब्दों के प्रयोग नव अभिव्यक्ति नहीं विश्व हिंदी कैसा सुयोग, घोषित या अघ...
मंगलवार, 7 जनवरी 2025

ढलते शब्द

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 न कोई बरगलाहट है न कोई सुप्त चाहत है वही ढल जाता शब्दों में जो दिल की आहट है बहुत बेतरतीब चलती है अक्सर जिंदगानी भी बहुत करीब ढलती है अविस्...
शनिवार, 4 जनवरी 2025

पीढियां

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 कुछ उम्र के सहारे चढ़ते हैं सीढियां इस युग में होने लगी ऐसी पीढियां बच्चों को कहें पढ़ने-लिखने की उम्र युवाओं से करते भविष्य का जिक्र जो अधेड़...
गुरुवार, 2 जनवरी 2025

अपने

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 शायद कोई सपने ना होते अगर कोई अपने ना होते चाह अंकुरण अथाह अंतहीन अपने ना हों तो रहे शब्दहीन भाव डुबुक लगाते तब गोते अगर कोई अपने ना होते क...
बुधवार, 1 जनवरी 2025

लुढ़कती जिंदगी

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 ढलान पर गेंद की तरह लुढ़कता भी तो व्यक्तित्व है, असहाय, असक्त सा जिसकी शून्य पड़ी हैं शक्तियां बांधे घर की उक्तियाँ कराती झगड़ा अपशब्द तगड़ा ला...
सोमवार, 30 दिसंबर 2024

वह

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 खयाल अपने बदलकर वह जवाब हो गए करने लगे चर्चा कि हम बेनकाब हो गए जब तक चले थे साथ, भर विश्वास हाँथ बुनते गए खुद को, देता रहा हर काँत पहचान म...
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धीरेन्द्र सिंह
हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में कार्यरत जिसमें कार्यालय, विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि, ऑनलाइन हिंदी समूहों में प्रस्तुत हिंदी पोस्ट में विकास, हिंदी के साथ अंग्रेजी का पक्षधर, हिंदी की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी विकास के प्रति विश्लेषण, हिंदी का एक प्रखर और निर्भीक वक्ता व रचनाकार।
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