निज़ता

भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।

सोमवार, 14 अक्टूबर 2024

अनुगूंज

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 एक अनुगूंज मद्धम तो तीव्र सत्य को कर आलोड़ित यही कहती है, धाराएं वैसी नहीं जैसी दिखती बहती हैं; मौलिकता या तो कला में है या क्षद्म प्रदर्शन ...
शनिवार, 12 अक्टूबर 2024

वर्चस्वता

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 सब कुछ अगर आप हैं तो आप कौन हैं? यही समझना है मुश्किल कि ताप कौन हैं; हर क्षण में लगते संयमित यह थाप कौन है? भावनाओं पर यह नियंत्रण कि अपरा...
गुरुवार, 10 अक्टूबर 2024

कविता

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 क्या लिखा जाए? कुछ नहीं सुझाती अंतर्चेतना तब उठता है यह प्रश्न और विवेक लगता है ढूंढने भावनात्मक आधार; लिखी जाती है तब  कविता मस्तिष्क से ग...
1 टिप्पणी:
बुधवार, 9 अक्टूबर 2024

बचना क्या

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 बांध मन यूं रचना क्या खाक होने से बचना क्या लौ बढ़ी लेकर नव उजाला दीप्ति में कितना रचि डाला कोई सोचे यूं जपना क्या खाक होने से बचना क्या सर्...
सोमवार, 7 अक्टूबर 2024

टप्प

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 शांत सरोवर सा मन अति मंद उठती यादों की लहरें, भावनाएं  घने जंगल की महुवा सा पसरे, गुनगुनाता, बुदबुदाता मन भीतर ही भीतर फहरे; सरोवर के किनार...
रविवार, 6 अक्टूबर 2024

कौन जाने

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 हृदय डूबकर नित सांझ-सकारे हृदय की कलुषता हृदय से बुहारे बूंदें मनन की मन सीपी लुकाए हृदय मोती बनकर हृदय को पुकारे इतनी होगी करीबी कुशलता लि...
शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2024

संजाल

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 इंटरनेट के जंगल में उलझा व्यक्ति स्वयं को पाता व्यस्त होकर मस्त, कामनाएं  फुदकती गौरैया सी भटक चलती है तो कभी ढलती है मन को रखते व्यस्त, गु...
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धीरेन्द्र सिंह
हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में कार्यरत जिसमें कार्यालय, विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि, ऑनलाइन हिंदी समूहों में प्रस्तुत हिंदी पोस्ट में विकास, हिंदी के साथ अंग्रेजी का पक्षधर, हिंदी की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी विकास के प्रति विश्लेषण, हिंदी का एक प्रखर और निर्भीक वक्ता व रचनाकार।
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