निज़ता

भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।

रविवार, 7 जनवरी 2024

छोरी

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 चाहत की इतनी नहीं कमजोरी क्यों आऊं मैं तुम्हारे पास छोरी गर्व के तंबू में तुम्हारा है साम्राज्य चापलूसों संग बेहतर रहता है मिजाज सत्य के धर...

क्या करूँ

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 चांदनी बादलों से अचानक गयी सिमट क्या करूँ व्योम से बोला बादल लिपट प्यार उर्ध्वगामी इसकी प्रकृति ना अवनति यार मात्र एक ठुमकी सहमति या असहमति...
शनिवार, 6 जनवरी 2024

अक्षत

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 दरवाजे की घंटी ने जो बुलाया देख सात-आठ लोग चकमकाया ध्यान से देखा तो केसरिया गले कहे राममंदिर हेतु अक्षत है आया श्रद्धा भाव से बढ़ गयी हथेलिय...

बहुत दूर से

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 बहुत दूर से वह सदा आ रही है उन्मुक्त कभी वह लजा आ रही है छुआ भाव ने एक हवा की तरह हुआ छांव सा एक दुआ की तरह वह तब से मन बना आ रही है उन्मुक...

छपवाली

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 जितनी छपी है क्या सब पढ़ ली फिर क्यों अपनी अभी छपवाली भाषाओं में नित नए सृजन तौर मौलिक हैं कितने कौन करे गौर अपनी महत्ता क्या सब में बढ़ाली फ...
शुक्रवार, 5 जनवरी 2024

राम मंदिर

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 इतिहास के पन्नों को निहार पांच सौ वर्षों की ललक पुकार स्वर्ण हिरण सा विचरित भ्रम हुआ ध्वनित फिर राम टंकार पांच सौ वर्ष पुरातत्व अभिलाषी कुछ...
गुरुवार, 4 जनवरी 2024

बिनकहे

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 मुझे हर तरह छूकर तुमने दिए तोड़ बिनकहे नूर सपने एक बंधन ही था, जिलाए भरोसा तुमने भी तो, थाली भर परोसा यकायक नई माला लगे दूर जपने दिए तोड़ बिन...
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धीरेन्द्र सिंह
हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में कार्यरत जिसमें कार्यालय, विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि, ऑनलाइन हिंदी समूहों में प्रस्तुत हिंदी पोस्ट में विकास, हिंदी के साथ अंग्रेजी का पक्षधर, हिंदी की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी विकास के प्रति विश्लेषण, हिंदी का एक प्रखर और निर्भीक वक्ता व रचनाकार।
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