निज़ता

भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।

शनिवार, 10 सितंबर 2022

मन अधीर है

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 शब्दों की गगरी में भावों के खीर हैं ओ प्रिये तुम कहाँ मन यह अधीर है एक अधर खीर का स्वाद बेजोड़ है मन में बसा उसका होता न तोड़ है चाहतें चटखती...
बुधवार, 24 अगस्त 2022

पपड़ियां

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पर्वतों के पत्थरों पर पड़ गयी पपड़ियां एक मुद्दत से यहां कोई हवा न बही व्योम में सूर्य की तपिश थी धरती फाड़ चांदनी पूर्णिमा में भी ना नभ में रह...

सन्नाटा

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 सन्नाटे में नई रोशनी जग रही उठिए न देखिए सांखल बज रही मत सोचिए हवा की है मस्तियाँ शायद कहीं करीब हो बस्तियां एकाकी आत्मिक सुंदरता सज रही उठ...
बुधवार, 10 अगस्त 2022

हिंदी

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शब्द की टहनियों में प्यास है भाव की वृष्टि भी उदास है बिखर रही है यह जुगलन्दी लिखिए आपके जो पास है चंद नामों से बचिए हैं मशहूर चिंतन आपका भ...
बुधवार, 3 अगस्त 2022

उड़ गई गौरैया

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न खोने का दर्द न पाने की खुशियां वह दर्द में न हो बंद है अभी बतियां उड़ गई गौरैया या जाल की दुनिया पीड़ा में ना रहे अभी सखा न सखियां संवादह...
मंगलवार, 24 मई 2022

अपहरण

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कब चले थे, राह भी है भ्रमित पांवों को दूरी का भी नहीं पता कब निर्मित ही गयी यह दूरियां वक़्त कहता समय से अब तो बता प्रकति यह सम्पूर्ण है डगम...

नदिया

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कितनी मंथर चल रही नदिया भावनाएं तैर कर तट छू गयी यह प्रकृति है या नियति डगर चलन है अंदाज लट खो गयी तेज नदिया थी तो लट भी था लहरें केश संवार...
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धीरेन्द्र सिंह
हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में कार्यरत जिसमें कार्यालय, विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि, ऑनलाइन हिंदी समूहों में प्रस्तुत हिंदी पोस्ट में विकास, हिंदी के साथ अंग्रेजी का पक्षधर, हिंदी की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी विकास के प्रति विश्लेषण, हिंदी का एक प्रखर और निर्भीक वक्ता व रचनाकार।
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