निज़ता

भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।

बुधवार, 11 सितंबर 2019

मन की तूलिका

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मन की तूलिका से भावों में रंग हो जाए विहंग तुमको सजाकर दुनिया को हटाकर, कब स्वीकारा है तुमने दुनिया के खपच्चे की बाड़ को अपने अंदाज स...

अतुकांत

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अधूरी रचनाओं की पंगत में कहीं खोई सी एक तरफ लुढ़की हताश सा विश्वास भावों को गढ़ रही हो, अनगढ़ क्या होता है यदि घट पर हो लहरें असंभव क्य...
गुरुवार, 28 मार्च 2019

ज़िन्दगी

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बूंदें जो तारों पर लटक रही तृषा लिए सघनता भटक रही अभिलाषाएं समय की डोर टंगी आधुनिकता ऐसे ही लचक रही चुनौतियों की उष्माएं गहन तीव्र वा...
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बुधवार, 27 मार्च 2019

तकनीकी संबंध

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मधुर मृदुल करतल ऐसी करती हो हलचल स्मित रंगोली मुख वंदन करती आह्लादित प्रांजल सम्मुख अभ्यर्थना कहां मन नयन पलक चंचल फेसबुक, वॉट्सएप, ...
मंगलवार, 26 मार्च 2019

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दुनिया है तो दुनियादारी है दाल, चावल, गेहूं, तरकारी है निजी है तो बेहतर ही होगा मिल जाता खोट गर सरकारी है उत्तरोत्तर कर रहा विकास चतुर...
गुरुवार, 12 अप्रैल 2018

शिल्पकार

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बैठ कर एक शिल्पकार एक मूर्ति में रहे रमा ना आकर्षण ना हंगामा बस रचनाधर्मिता का शमा न कोई ओहदा न कोई पद न सुविधाओं का समां मिट्टी में...
गुरुवार, 5 अप्रैल 2018

अनुभूति

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मन जब अपनी गहराई में उतर जाए एक ख़ामोश सन्नाटा मिले कुछ कटा जाए और एकाकीपन की उठी आंधी आवाज लगाए टप, टप, टप ध्वनित होती जाए; प्रा...
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धीरेन्द्र सिंह
हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में कार्यरत जिसमें कार्यालय, विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि, ऑनलाइन हिंदी समूहों में प्रस्तुत हिंदी पोस्ट में विकास, हिंदी के साथ अंग्रेजी का पक्षधर, हिंदी की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी विकास के प्रति विश्लेषण, हिंदी का एक प्रखर और निर्भीक वक्ता व रचनाकार।
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