निज़ता

भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।

बुधवार, 7 मार्च 2018

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

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शब्दों की गुहार है उत्सवी खुमार है आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस झंकार है शहर, महानगर व्यस्त हैं आयोजन में अर्धशहरी, ग्रामीण मस्त अनजाने...
सोमवार, 5 मार्च 2018

ज़िन्दगी

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ज़िन्दगी को जिंदादिली नहीं इंसां कहीं तो ज़िन्दगी कहीं फकत ईमानदारी ही जरूरी बाकी सब तकल्लुफ वहीं का वहीं जरिया जज्बात हो जरूरी नहीं आब...

नई पीढ़ी

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अदब दब अब गुमाँ हो गई यही सोच नया पीढी भी नई संस्कार के आसार अब कहां विद्या कभी नौकरी यहां-वहां परिवेश आत्मचिंतन धुंधला गई यही सोच नय...

व्यक्तित्व

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खुद से बने वो प्राचीर हो गए अनुगामी जो रहे तामीर हो गए स्वनिर्माण भी है बुनियादी संस्कार पखारा किए खुद को और धो गए बेजान ही प्रवाह मे...

बिंदिया

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           बिंदिया एक आग मसल अंगुलियों में बिंदिया बना दूं भाल पर ताल ज़िन्दगी का दे सरजमीं सजा दूं सम्मोहित दृष्टि की वृष्टि में तिर...
बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

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ऐसी ना आप करो ठिठोली अबकी बहकी होली में भींग चुकी हो रंग-रंग अब भावों की हर टोली में कोरी चूनर की मर्यादा पुलकित रहे हर टोली में बहक...

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कैसी-कैसी कसक रही बोली है मौसम ले अंगड़ाई बोले होली है कल्पनाएं रचाएं व्यूह रचना अजब खुद को सायास कोशिश रखें सजग गज़ब-अजब अंदाज़ अलबेली र...
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धीरेन्द्र सिंह
हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में कार्यरत जिसमें कार्यालय, विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि, ऑनलाइन हिंदी समूहों में प्रस्तुत हिंदी पोस्ट में विकास, हिंदी के साथ अंग्रेजी का पक्षधर, हिंदी की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी विकास के प्रति विश्लेषण, हिंदी का एक प्रखर और निर्भीक वक्ता व रचनाकार।
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