निज़ता

भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।

शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

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सृष्टि आकृष्ट हो समिष्ट हो गई अर्चनाएं अनुराग की क्लिष्ट हो गई व्यक्तित्व पर व्यक्तित्व का आरोहण गतिमानता निःशब्द मौन दृष्टि हो गई प्...

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बस मुनादी ध्वनि उदासी उत्सवी रह-रह तमाशा राजभाषा जो रहा 80 दशक में जारी है अब भी मसक के नवीनता लिए हताशा राजभाषा प्रबंधन ने दी स्...
गुरुवार, 15 फ़रवरी 2018

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प्यार के बयार में नए श्रृंगार मन अतुराये लिए नई तरंग कोई यूं आया मन-मन भाया महका परिवेश ले विशिष्ट गंध भावनाएं उड़ने लगीं आसक्ति डोर म...
मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018

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अब तुम तुम ना रही सिंचित हो चुकी मुझमें कहो क्या अनुभूति है स्पर्श मिल सहर्ष आनंद का ले स्वर्ग उड़ रहा मुझमें कहो क्या अनुभूति है ...
शुक्रवार, 17 नवंबर 2017

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मीटिंग एक आदत या अनिवार्यता नियमित है होती नया अक्सर लापता इस संग यदि समारोह जुड़ जाए भोजन समय चर्चा, कहो क्या पाए फोटो की होड़ को...
शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

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मैं यह जानता हूँ सच्चा प्रायः दंडित होता है मैं मानता हूँ हो सशक्त आधार खंडित होता है, मैं यह देखता हूँ कर्मठ प्रायः लक्षि...
सोमवार, 21 अगस्त 2017

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अस्मिता असमंजस में ओजस्विता कश्मकश में ये अद्भुत बुद्धजीवी लेखन लांछन में चिंतन के छाजन में ये अद्भुत बुद्धजीवी हिंदी के ह...
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मेरे बारे में

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धीरेन्द्र सिंह
हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में कार्यरत जिसमें कार्यालय, विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि, ऑनलाइन हिंदी समूहों में प्रस्तुत हिंदी पोस्ट में विकास, हिंदी के साथ अंग्रेजी का पक्षधर, हिंदी की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी विकास के प्रति विश्लेषण, हिंदी का एक प्रखर और निर्भीक वक्ता व रचनाकार।
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