निज़ता

भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।

बुधवार, 16 अगस्त 2017

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बेचैनियां करा देती हैं एहसासी गबन ऐ भ्रष्टाचार तू स्पंदन में ढल गया नादानियाँ प्यार की आभूषण लगे ऐ शिष्टाचार तू क्रंदन में गल गया ...
सोमवार, 14 अगस्त 2017

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राष्ट्र है धृतराष्ट्र ना बना करोड़ों की शान मन में है घना राष्ट्र है शास्त्र कई आधार बना जीवन के कई पथ बना करे सामाजिक संघट...

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बस एक थोड़ा सा मन है शेष तो सब यहाँ गबन है थोड़ा वक्त थोड़ा प्यार है थोड़ी ज़मीं थोड़ा चमन है अख्तियार पूरा करने की ज़िद पूरा खुद कहा...

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विलुप्त न होने की हल्की गुहार शब्दों की हो गयी सावनी फुहार बूंदों ने राहों को जलमग्न किया तथागत के कदमों ने मान ली हार एक शब्द ए...

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अब न तुम पर नया गीत लिखूंगा सिद्धांत के अनुसार न मीत लिखूंगा तुम एक नई डगर पर चलने लगी जब भी लिखूंगा सीख प्रीत लिखूंगा समर्पण ...

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ऐसा लगे संबंधों में ऋण हो गए राधा मीरा गोपी बिना कृष्ण हो गए पूतना पग पग पर रह रह लुभाए सम्मोहित कर प्राण हर ले जाए वासुदेव कब क...

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कृष्ण तृण तृण में तृण तृण में रण है कंस कारावास दंश कृष्णावतार प्रण है जन्म कब रहा आसान घमासान कई गण है जन्म होते मॉ से ज़ुदा...
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धीरेन्द्र सिंह
हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में कार्यरत जिसमें कार्यालय, विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि, ऑनलाइन हिंदी समूहों में प्रस्तुत हिंदी पोस्ट में विकास, हिंदी के साथ अंग्रेजी का पक्षधर, हिंदी की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी विकास के प्रति विश्लेषण, हिंदी का एक प्रखर और निर्भीक वक्ता व रचनाकार।
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