निज़ता

भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।

बुधवार, 28 जून 2017

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मन पानी की तरह है जिधर ढलना ढल जाएगा बावरे तू न कुछ कर पाएगा हर मन का अपना पवन है मन की प्रीत बड़ी गहन है मन किसी बांध से न बंध...
मंगलवार, 27 जून 2017

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क्यों छुआ तुमने निमंत्रण न था क्यों जिया तुमने आमंत्रण न था एक अगन ज़िन्दगी जलाती रहेगी क्यों किया तुमने जब प्रण न था।

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पत्नी दो नयना है प्रिये है तीसरी आंख पत्नी अगर है गरिमा प्रिये लगे, है साख दो नयन करे आचमन तीसरी आंख करे फांक रसीले आम सी ज़ि...

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तुम गुमसुम लगी थी पहली मुलाकात में अब झरने जैसी कल-कल बहती दिलोजान में यह भी तो ज़िन्दगी अपनी है दुनिया से छुपी हुई खिल-खिल कर मस्ती ...
शनिवार, 17 जून 2017

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मेरी प्रीत अर्चना की नीर हो गयी तेरी रीत प्रीत की प्राचीर हो गयी मेरी भावनाएं लहरों में है हुंकारे मोहब्बत की तालीम बन ज़मीर हो गयी ...
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शनिवार, 10 जून 2017

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तीन बजे रात से तुम्हें सोचते रहा जैसे नमाज़ी सेहरी में मशगूल ईश्वर प्यार ही तो है, सब करें चांद की ख्वाहिश लिए उसूल भोर की मस्जिद की दि...
1 टिप्पणी:
सोमवार, 5 जून 2017

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तुम्हारी पलकों ने मेरी पलकों को छुआ आंखें खुली, सुबह धुली-धुली, दे दुआ यह स्वप्न था या एहसास था ना जानूँ पलकों में भोर का जल गया व...
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धीरेन्द्र सिंह
हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में कार्यरत जिसमें कार्यालय, विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि, ऑनलाइन हिंदी समूहों में प्रस्तुत हिंदी पोस्ट में विकास, हिंदी के साथ अंग्रेजी का पक्षधर, हिंदी की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी विकास के प्रति विश्लेषण, हिंदी का एक प्रखर और निर्भीक वक्ता व रचनाकार।
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