निज़ता

भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

झुक गयी साँझ

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झुक गयी साँझ एक जुल्फ तले चाँद हो मनचला इठलाने लगा सितारों की महफ़िलें सजने लगी आसमान बदलियाँ बहकाने लगा नीड़ के निर्वाह में जीव-जन्तु व्यस्...
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बुधवार, 23 नवंबर 2011

प्यार के गीत लिखो

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स्वप्न नयनों से छलक पड़ते हैं बातें ख्वाबों में अक्सर दब जाती हैं अधूरी चाहतों की सूची है बड़ी चाहत संपूर्णता में कब आती है ...
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शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

नारी नमन तुम्हें

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और बोलो ना उदास दिल है बहुत तुमको सुनने की तमन्ना उभर आई है खुद से भाग कर तुम तक जाऊँ फिर लगे रोशनी नस-नस में भर आई है तुम ही ह...
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गुरुवार, 10 नवंबर 2011

दीप कहाँ और कहाँ सलाई

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जनम , ज़िंदगी , जुगत चतुराई लाग , लपट , लगन बहुराई आस अनेकों प्यास नयी है कैसे निभेगी कहो रघुराई चाकी बंद न होने पाये निखर- ...
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बुधवार, 9 नवंबर 2011

यदि मैं कह पाता

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यदि मैं कह पाता मन की बातें कविता में फिर कहता क्यों ठौर मुकम्मल सचमुच होता तो फिर भावों में यूं बहता क्यों सुघड़-सुघड़ जीवन , ...
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गुरुवार, 3 नवंबर 2011

एकनिष्ठता हटो

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दो साँसों के जहां में एकनिष्ठ हो जाऊंगा इतने लुभावन में कैसे सृष्टि से बच पाऊँगा प्रीत की रीति में मनमीत की होती प्रतीति रीति से भट...
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फिर वही खुमारी है

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शब्दों के मुंह पर किलकारी है ज़ुल्फ चाहत ने फिर सँवारी है भाव भींगे से उनींदे से अलसाए छा गयी फिर वही खुमारी है कितने दिन दूर र...
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धीरेन्द्र सिंह
हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में कार्यरत जिसमें कार्यालय, विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि, ऑनलाइन हिंदी समूहों में प्रस्तुत हिंदी पोस्ट में विकास, हिंदी के साथ अंग्रेजी का पक्षधर, हिंदी की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी विकास के प्रति विश्लेषण, हिंदी का एक प्रखर और निर्भीक वक्ता व रचनाकार।
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