निज़ता

भावनाओं के पुष्पों से, हर मन है सिजता अभिव्यक्ति की डोर पर, हर मन है निजता शब्दों की अमराई में, भावों की तरूणाई है दिल की लिखी रूबाई में,एक तड़पन है निज़ता।

गुरुवार, 10 नवंबर 2011

दीप कहाँ और कहाँ सलाई

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जनम , ज़िंदगी , जुगत चतुराई लाग , लपट , लगन बहुराई आस अनेकों प्यास नयी है कैसे निभेगी कहो रघुराई चाकी बंद न होने पाये निखर- ...
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बुधवार, 9 नवंबर 2011

यदि मैं कह पाता

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यदि मैं कह पाता मन की बातें कविता में फिर कहता क्यों ठौर मुकम्मल सचमुच होता तो फिर भावों में यूं बहता क्यों सुघड़-सुघड़ जीवन , ...
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गुरुवार, 3 नवंबर 2011

एकनिष्ठता हटो

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दो साँसों के जहां में एकनिष्ठ हो जाऊंगा इतने लुभावन में कैसे सृष्टि से बच पाऊँगा प्रीत की रीति में मनमीत की होती प्रतीति रीति से भट...
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फिर वही खुमारी है

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शब्दों के मुंह पर किलकारी है ज़ुल्फ चाहत ने फिर सँवारी है भाव भींगे से उनींदे से अलसाए छा गयी फिर वही खुमारी है कितने दिन दूर र...
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सोमवार, 9 मई 2011

डर लगता है

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आलीशान मकानों से डर लगता है सफेदपोशों से अब डर लगता है गाँधी,सुभाष,भगत सिंह,बिस्मिल आ जाएँ कि फिर डर लगता है आज नेतृत्व की न...
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रविवार, 8 मई 2011

नेह तुम्हारा

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अब भी मेरे नयन पुलकित आस की राहें हैं हर्षित कौन कहता चुक गया स्नेह शब्द मेरे नहीं हैं कल्पित नेह जब तक है तुम्हारा कल्पना म...
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शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

चाँद चौखट पर बैठा

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चाँद चौखट पर बैठा चांदनी बिखर गयी आपके चहरे को छूकर चांदनी निखर गयी रात्रि ने करवट बदलकर आपसे क्या बात की चंद लम्हे में ही जुल्फें आपकी ब...
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धीरेन्द्र सिंह
हिंदी के आधुनिक रूप के विकास में कार्यरत जिसमें कार्यालय, विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि, ऑनलाइन हिंदी समूहों में प्रस्तुत हिंदी पोस्ट में विकास, हिंदी के साथ अंग्रेजी का पक्षधर, हिंदी की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी विकास के प्रति विश्लेषण, हिंदी का एक प्रखर और निर्भीक वक्ता व रचनाकार।
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